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आप अपनी जगह और मन अपनी जगह || आचार्य प्रशांत, अष्टावक्र गीता पर (2017)

2019-11-26 1 Dailymotion

वीडियो जानकारी:<br /><br />शब्दयोग सत्संग<br />२१ अप्रैल, २०१७<br />अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा<br /><br />अष्टावक्र गीता, अध्याय १८ से,<br />नानाविचारसुश्रान्तो धीरो विश्रान्तिमागतः।<br />न कल्पते न जानाति न शृणोति न पश्यति।।२७।।<br /><br />जो धीर पुरुष अनेक विचारों से थककर अपने स्वरुप में विश्राम पा चुका है, वह न कल्पना करता है, न जानता है, न सुनता है, और न देखता है।<br /><br />प्रसंग:<br />धीर पुरुष न कल्पना करता है, न जानता है, न सुनता है, और न देखता है ऐसा क्यों कह रहें अष्टावक्र?<br />आत्मा क्या है?<br />मन को केंद्रित कैसे करें?<br />आत्मा कहाँ है?<br />जो धीर पुरुष अनेक विचारों से थककर अपने स्वरुप में विश्राम पा चुका है, वह न कल्पना करता है, न जानता है, न सुनता है, और न देखता है। अपने स्वरुप से क्या आशय है?

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